स्थिर विधुत विभव तथा धारिता |
1. विभव-प्रवणता का मात्रक एवं विमीय सूत्र लिखिए।
उत्तर – मात्रक- वोल्ट/मीटर तथा विमा – [MLT-3A-1]
2. दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर50 V है। एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक 2
x 10-5कूलॉम आवेश को ले जाने पर कितना कार्य करना होगा ?
उत्तर – कार्य (W) = आवेश x विभवान्तर
= 2 x 10-5 कूलॉम x
50 वोल्ट = 10-3 जूल।
3. संधारित्र में साधारणतया प्रयुक्त होने वाले किन्हीं दो परावैद्युत पदार्थों
के नाम लिखिए।
उत्तर- अभ्रक व
काँच।
4. 10 सेमी
की दूरी पर स्थित दो बिन्दुA व B के विभव क्रमशः +10 वोल्ट तथा –10 वोल्ट हैं। 0 कूलॉम आवेश को A से B तक ले जाने में कितना कार्य करना
होगा?
उत्तर – 1.0 कूलॉम आवेश को A से B तक ले
जाने में किया गया कार्य
W = (VB – VA) q0 = (-10 – 10) x 1.0 = -20 जूल
अत: कार्य प्राप्त होगा।
5. सम-विभव पृष्ठ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर – किसी वैद्युत क्षेत्र में खींचा गया वह पृष्ठ जिस पर स्थित सभी बिन्दुओं
पर वैद्युत विभव बराबर हो, समविभव पृष्ठ कहलाता है।
6. एक आवेशित संधारित्र एवं एक वैद्युत सेल में मूल अन्तर क्या है?
उत्तर – आवेशित संधारित्र में वैद्युत आवेश संग्रहीत रहता है, जबकि वैद्युत सेल में वैद्युत आवेश का प्रवाह होता है।
7. किसी समविभव पृष्ठ के दो बिन्दुओं के मध्य800 μC आवेश को गति कराने में कितना कार्य
होगा?
उत्तर – समविभव पृष्ठ के प्रत्येक बिन्दु पर विभव का मान समान होता है। अतः पृष्ठ
के किन्हीं भी दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर ΔV = 0
अतः q = 800 μC = 800 x
10-6 कूलॉम को इन बिन्दुओं के बीच गति
कराने में किया गया कार्य
W = q x ΔV = (800 x
10-6) x 0 = 0 (शून्य) [∴ 1 μC = 10-6 C]
8. संधारित्र किसे कहते हैं?
उत्तर – संधारित्र एक ऐसा समायोजन है जिसमें किसी चालक के आकार में परिवर्तन किये
बिना उस पर आवेश की पर्याप्त मात्रा संचित की जा सकती है।
9. S.I पद्धति
में धारिता की विमा लिखिए। इसका मात्रक क्या है?
उत्तर – धारिता की विमा [M-1L-2T4A2] तथा मात्रक फैरड है।
10. दो वैद्युत बल रेखाएँ क्यों एक-दूसरे को काट नहीं सकती हैं? क्या दो समविभव सतह काट सकती हैं?
उत्तर – कोई भी दो वैद्युत् क्षेत्र रेखाएँ परस्पर एक-दूसरे को काट नहीं सकती हैं क्योंकि ऐसी स्थिति में कटान बिन्दु पर दो स्पर्श रेखाए जा सकती
हैं जो एक ही बिन्द पर वैद्यत क्षेत्र की दो दिशाओं का प्रदर्शित करेंगी जो सम्भव नहीं है। दो समविभव सतह भी काट नहीं सकती हैं क्योंकि
कटान बिन्द पर विभव के दो मान होंगे जोकि असम्भव हैं
11. समान्तर प्लेट संधारित्र में दूसरी प्लेट का क्या कार्य है?
उत्तर – संधारित्र की दूसरी प्लेट पहली प्लेट को दिये गये आवेश की प्रकृति के
विपरीत प्रकृति के आवेश से आवेशित होकर (स्थिर वैद्युत प्रेरणा द्वारा) पहली प्लेट
के विभव को कम कर देती है जिससे कि प्लेटों के बीच विभवान्तर कम हो जाता है जिसके
फलस्वरूप संधारित्र की धारिता बढ़ जाती है अर्थात् पहली प्लेट पर और आवेश संग्रहित
किया जा सकता है।
12. संघारित्र की धारिता को प्रभावित करने वाले दो कारक को लिखें-
उत्तर – संधारित्र की धारिता को प्रभावित करने वाले दो कारक इस प्रकार है-
(i) Plate का क्षेत्र।
(ii) Plates के बीच की दूरी
13. स्थिर वैद्युत परिरक्षणं (Electrostatic Shielding) क्या है? इसके एक जीवन उपयोगी उपयोग को लिखिए।
उत्तर – स्थिर वैद्युत परिरक्षण किसी खोखले अथवा ठोस आवेशित चाल को दिया गया आवेश
उसके पृष्ठ पर ही रहता है। अतः इसके वैद्युत क्षेत्र की वैद्युत बल रेखाएँ चालक के
अन्दर प्रवेश नहीं करती हैं। अतः किसी वैद्युत उपकरण को बाह्य वैद्युत क्षेत्र के
प्रभाव से बचाने के लिए इसको गोलीय खोखले चालक के अन्दर रखा जाता है। बाह्य
वैद्युत क्षेत्र की वैद्युत बल रेखाएँ चालक के पृष्ठ के लम्बवत् बाहर की ओर होगा,
इसके अन्दर प्रवेश नहीं करेंगी। अतः वैद्युत उपकरण सुरक्षित रहेगा।
यह प्रक्रिया विद्युत् परिरक्षण कहलाती है।
व्यावहारिक उपयोग :- इस
सिद्धान्त के आधार पर ही वर्षा के समय बादलों के घर्षण से उत्पन्न तीव्र वैद्युत
से बचने के लिए किसी कार में बैठा व्यक्ति कार की खिड़कियों को बन्द कर लेता है।
अतः इस प्रकार चालक कार एक खोखले चालक कोश की भाँति व्यवहार कर उस व्यक्ति को
वैद्युत के प्रभाव से बचाये रखता है।
14. r1 त्रिज्या तथाq1आवेश वाला एक छोटा गोला r2त्रिज्या और q2 आवेश के गोली
खोल (कोश) से घिरा है। दर्शाइए यदि q1 धनात्मक
है तो (जब दोनों को एक तार द्वारा जोड़ दिया जाता है) आवश्यक रूप से आवेश, गोले से खोल की तरफ ही प्रवाहित होगा, चाहे खोल
पर आवेश q2 कुछ भी हो।
उत्तर – हम जानते हैं कि किसी चालक का सम्पूर्ण आवेश उसके बाह्य पृष्ठ पर रहता है;
अतः जैसे ही दोनों गोलों को चालक तार द्वारा जोड़ा जाएगा वैसे ही
अन्दर वाले छोटे गोले को सम्पूर्ण आवेश तार से होकर
बाहरी खोल की ओर प्रवाहित हो जाएगा, चाहे खोल पर आवेश q2 कुछ भी क्यों न हो।
15. परावैद्युत पदार्थ क्या है?
उत्तर – परावैद्युत पदार्थ वह पदार्थ होता है जिसके अन्दर सभी परमाणुओं में उनके
सभी इलेक्ट्रॉन नाभिक के आकर्षण बल से दृढ़तापूर्वक बँधे रहते हैं। अतः ऐसे
पदार्थों में वैद्युत चालन के लिए कोई भी मुक्त इलेक्ट्रॉन उपलब्ध नहीं होता अथवा
मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या नगण्य होती है। अतः परावैद्युत पदार्थ वे पदार्थ हैं
जिनमें होकर वैद्युत प्रवाह नहीं होता। फिर भी यदि कोई वैद्युत-क्षेत्र किसी
परावैद्युत पदार्थ पर आरोपित किया जाता है तो परावैद्युत पदार्थ के पृष्ठों
पर प्रेरित आवेश उत्पन्न हो जाता है। अतः परावैद्युत पदार्थ वे कुचालक (insulator)
पदार्थ हैं जिनमें वैद्युत प्रभाव (electric effects) बिना वैद्युत चालन के संचरित होते हैं।” किसी वैद्युत चालक के किसी बिन्दु
पर दिया गया आवेश उसकी पूरी सतह पर शीघ्रता से फैल जाता है, जबकि
किसी परावैद्युत के किसी बिन्दु पर दिया गया आवेश उसी के निकटवर्ती क्षेत्र में
स्थिर रहता है। उदाहरण-काँच, रबर, प्लास्टिक,
ऐबोनाइट, माइका, मोम,
कागज, लकड़ी आदि।
16. किसी परावैद्युत पदार्थ के वैद्युत ध्रुवण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर – द्युत धुवण- किसी परावैद्युत अथवा विद्युतरोधी
को बाह्य वैद्युत क्षेत्र में रखने पर इसके धन व ऋण आवेशों के केन्द्र पृथक्-पृथक्
हो जाते हैं, जिससे इनमें वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण प्रेरित
हो जाते हैं। ऐसे परावैद्युत को ध्रुवित होना कहते हैं तथा इस घटना को वैद्युत
ध्रुवण कहते हैं।
17. संधारित्रों में परावैद्युत के उपयोग से धारिता क्यों बढ़ जाती है?
या
किसी संधारित्र की प्लेटों के बीच परावैद्युत पदार्थ भरने पर इसकी
धारिता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर – संधारित्रों की प्लेटों के बीच परावैद्युत भरने से इसके अन्दर प्लेटों के
बीच उपस्थित वैद्युत-क्षेत्र के विपरीत दिशा में एक आन्तरिक वैद्युत-क्षेत्र
उत्पन्न हो जाता है, जो इसकी सतह पर प्लेटों के विपरीत आवेश
के प्रेरित होने से उत्पन्न होता है। अतः प्लेटों के बीच विभवान्तर घट जाता है,
जिसके परिणामस्वरूप धारिता बढ़ जाती है।
18. परावैद्युत सामर्थ्य एवं भंजक विभवान्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – परावैद्युत सामर्थ्य- परावैद्युत पर आरोपित
वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता का वह अधिकतम मान जिसको परावैद्युत बिना परावैद्युत
भंजन के सहन कर सकता है, परावैद्युत की परावैद्युत सामर्थ्य
कहलाती है।
भंजक विभवान्तर- किसी परावैद्युत पदार्थ के भंजक हुए बिना उसके दोनों सिरों के बीच लगाए गए
वैद्युत विभवान्तर के अधिकतम मान को उस परावैद्युत का भंजक विभवान्तर कहते हैं।